बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency एक इंसान की कहानी जिसने 100 दिन में खुद को बदल दिया, Motivational Hindi Story, Inspirational Story.


बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency
बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency एक इंसान की कहानी जिसने 100 दिन में खुद को बदल दिया, Motivational Hindi Story, Inspirational Story.
बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ले आती है,
जहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
सब कुछ खाली, ठहरा हुआ, और टूट चुका सा लगता है।
विवेक की ज़िंदगी में भी ऐसा ही समय था।
नौकरी चली गई,
प्यार चला गया,
दोस्त भी अब पास नहीं थे।
कमरे में अकेला बैठा था वो, बाहर तेज़ बारिश हो रही थी।
उसने आसमान की ओर देखा और धीरे से कहा –
“अब कुछ करना होगा… नहीं तो मैं बिखर जाऊँगा।”
उसी रात उसने खुद से एक छोटा सा वादा किया –
“हर दिन दौड़ूंगा, लगातार 100 दिन… चाहे बारिश हो या आँधी।”
यहीं से शुरू हुई –
बारिश के 100 दिन: Success Story of Consistency
सुबह फिर बारिश थी।
लेकिन आज विवेक रजाई में नहीं छिपा।
उसने पुराने जूते पहने, और दौड़ने निकल पड़ा।
पैर कांप रहे थे,
मन कह रहा था – “क्या कर रहा है तू?”
लेकिन दिल चुपचाप कह रहा था –
“बस एक दिन कर… फिर देखेंगे।”
और उसने कर लिया।
यही था पहला कदम –
बारिश के 100 दिन: Success Story of Consistency की ओर।
अब दौड़ की आदत बनने लगी थी।
लेकिन असली लड़ाई अब मन से थी।
हर सुबह बहाने तैयार होते –
“आज बारिश बहुत है…”
“कल से फिर शुरू करूंगा…”
“थोड़ा आराम कर लूं…”
लेकिन विवेक हर बार खुद से कहता –
“Consistency का मतलब है – करना, चाहे मन माने या नहीं।”
और उसने दौड़ना बंद नहीं किया।
बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency
एक सुबह इतनी तेज़ बारिश थी कि कोई भी बाहर न निकलता।
लेकिन विवेक गया।
वो भीगा… दौड़ा… और रो पड़ा।
उसे पहली बार एहसास हुआ –
“अब मैं पहले जैसा नहीं हूँ… अब मैं टूटता नहीं, लड़ता हूँ।”
बारिश के 100 दिन: Success Story of Consistency अब सिर्फ दौड़ की कहानी नहीं थी –
ये एक नया जन्म बन चुका था।
अब पार्क में कुछ लोग रोज़ दिखने लगे थे।
एक बच्चा मुस्कराकर बोला – “मम्मी, ये रोज़ दौड़ते हैं!”
एक बूढ़े अंकल ने कहा – “आपने मुझे फिर से चलने की हिम्मत दी।”
विवेक को लगा –
“जब आप खुद को बदलते हैं, तो दुनिया भी बदलने लगती है।”
अब वो अकेला नहीं था।
अब हर सुबह की दौड़ एक ध्यान बन गई थी।
ना कोई शोर, ना डर, ना चिंता।
सिर्फ वो, उसकी साँसें, और बारिश की बूंदें।
उसने जाना –
“सच्ची ताक़त बाहर नहीं, अपने अंदर होती है।”
100वें दिन वो फिर उसी रास्ते पर दौड़ा, जहाँ कभी अकेला, थका और टूटा हुआ चला था।
अब उसका मन शांत था, चेहरा चमक रहा था।
उसने आसमान की ओर देखा और मुस्कराया –
“मैं जीत गया… खुद से, अपने डर से, अपने बहानों से।”
बारिश के 100 दिन: Success Story of Consistency अब एक कहानी नहीं थी –
ये उसकी पहचान बन गई थी।
“हर बूंद जो आज तुम्हें गिरा रही है,
कल वही तुम्हें ऊँचा उठाएगी।
बस चलते रहो…
क्योंकि जीत उन्हीं की होती है,
जो 100 दिन भीगने को तैयार होते हैं।”हम आशा करते है आपको – बारिश के 100 दिन Success Story of Consistency पसंद आई होगी।