बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story

बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story, पूजा-पाठ, आरती, भोग, मेलों और दियोटसिद्ध मंदिर परिसर के सभी दर्शनीय स्थलों की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में।

🛕 बाबा बालक नाथ मंदिर (Baba Balak Nath Temple) – जानकारी सारणी

Table of Contents

विषयविवरण
स्थानदियोटसिद्ध (Deotsidh), जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत
समर्पितश्री बाबा बालक नाथ जी महाराज
प्रमुख आकर्षणगुफा मंदिर, अखंड धूणा, थड़ा, चरण पादुका मंदिर
पवित्र स्थलबाबा जी की पिण्डी (गुफा में), धूणा, बकरा स्थल
विशेष आरती समयसुबह 5-6 बजे एवं शाम सूर्यास्त के समय
विशेष पूजा विधिब्रह्म मुहूर्त में बावड़ी से जल लाकर स्नान व रोट प्रसाद
प्रमुख पर्व व मेलेनया साल बाबा जी दे नाल, चैत्र मेला, संक्रांति, श्रावण मेला, महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, दीपावली, विश्वशांति रूद्रयज्ञ
मुख्य दर्शन स्थलगुफा, धूणा, थड़ा, बाबा भरथरी मंदिर, समाधि स्थल, चरण पादुका मंदिर
अन्य मंदिर परिसर मेंशिवजी, हनुमान जी, माता काली, राधा-कृष्ण, बाबा भैरव, गुरु दत्तात्रेय मंदिर
सुविधाएंदो बाज़ार, बैंक, ATM, पुलिस चौकी, धर्मशालाएं, होटल
शाहतलाई के दर्शनीय स्थललस्सी बाबा का धूणा, रोटी बाला मंदिर, वट वृक्ष, गुरना झाड़ी, बछरेटू महादेव मंदिर
वर्तमान महंतश्री श्री 1008 राजेन्द्र गिरी जी महाराज
कैसे पहुँचेंनिकटतम रेलवे स्टेशन – ऊना; बस द्वारा दिल्ली/चंडीगढ़ से सीधी सेवा उपलब्ध

बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story का आरंभ हम भारत भूमि की पुण्यता और बाबा बालक नाथ जी का दिव्य अवतरण से करते है।

प्रस्तावना : भारत भूमि की पुण्यता और बाबा बालक नाथ जी का दिव्य अवतरण

बाबा बालक नाथ कथा - Baba Balak Nath Story

बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story

भारत भूमि केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक पावन तपोभूमि है, जहाँ ऋषियों, मुनियों और सिद्धों ने जन्म लेकर सम्पूर्ण मानवता को अध्यात्म, धर्म और संस्कृति का अमूल्य उपहार प्रदान किया है। इस पवित्र भूमि की महिमा का वर्णन स्वयं देवगण भी करते हैं, जैसा कि विष्णु पुराण में उल्लिखित है:

गायन्ति देवा: किल गीतकानि,
धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे।
स्वर्गापवर्ग मार्ग भूते,
भवन्ति भूय: पुरुषा सुरत्वात्।।

(विष्णु पुराण 2.3.24)

अर्थात् – देवता स्वयं कहते हैं कि जो मनुष्य भारतभूमि में जन्म लेते हैं, वे धन्य हैं। यह भूमि स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग है, जहाँ जन्म लेने वाले मनुष्य देवताओं के समान हो जाते हैं।


हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश तो मानो साक्षात् देवों का निवास स्थान है। यहाँ की वादियों में ऋषियों की वाणी गूंजी है, सिद्ध पुरुषों ने कठिन तपस्या कर दिव्यता प्राप्त की है, और अनगिनत तीर्थस्थल आज भी भक्तों के लिए आस्था के केंद्र बने हुए हैं।

भारत की नौ नाथों और चौरासी सिद्धों की परंपरा न केवल आध्यात्मिक चेतना की प्रतीक है, बल्कि उसने धर्म, भक्ति, साहित्य और संस्कृति को भी अमूल्य दिशा दी है। इन्हीं सिद्ध परंपराओं में एक दिव्य नाम है – सिद्ध बाबा बालक नाथ जी का, जो आज भी भक्तों के हृदय में जीवंत हैं।

बाबा बालक नाथ जी का पवित्र सिद्धधाम हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में दियोटसिद्ध नामक स्थान पर स्थित है। यह स्थान केवल एक तीर्थ नहीं, अपितु एक जीवंत अध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र है, जहाँ श्रद्धा, भक्ति और दिव्यता का अद्भुत संगम होता है।

इस सिद्धपीठ की समुचित व्यवस्था हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा गठित ‘बाबा बालक नाथ मंदिर न्यास, दियोटसिद्ध’ के माध्यम से की जाती है। न्यास 16 जनवरी 1987 से निरंतर श्रद्धालुओं की सेवा में समर्पित है। न केवल धार्मिक सेवा, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्रों में भी न्यास द्वारा अनेक अनुकरणीय कार्य किए जा रहे हैं।

यह लेख ,बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story यह प्रस्तुति, एक विनम्र प्रयास है — जिससे बाबा बालक नाथ जी के भक्तों और आम जनमानस तक उनके दिव्य धाम, जीवन-चरित्र, चमत्कारों, सेवाओं तथा मंदिर परिसर से जुड़ी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की विस्तृत जानकारी सहज रूप में पहुँच सके।

आशा है कि यह श्रद्धा-सिक्त प्रयास सभी पाठकों को लाभान्वित करेगा, उनके हृदय में बाबा जी के प्रति और अधिक भक्ति उत्पन्न करेगा, और उन्हें उनके चरणों की ओर अग्रसर करेगा।


ऐतिहासिक वृतांत – बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story

जनश्रुतियाँ, लोकगाथाएँ और देवी-देवताओं के जीवनचरित्र किसी भी समाज की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक चेतना का प्रतिबिंब होती हैं। भारत जैसे महान धर्मप्रधान देश में जहाँ आस्था, भक्ति और योग का संगम होता है, वहाँ परंपरा से प्राप्त कथाएँ मात्र कल्पना नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और अनुभव का संचित स्वरूप हैं।

श्री सिद्ध योगी बाबा बालक नाथ जी का जीवन भी ऐसी ही दिव्य परंपरा और लोकविश्वास से जुड़ा है, जो हमें न केवल अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि साधना, भक्ति और ब्रह्मचर्य के पथ पर चलकर कोई भी आत्मा सिद्धि और ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकती है।

जो जनश्रुतियाँ, गाथाएँ, और धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है, उसके अनुसार बाबा बालक नाथ कथा – Baba Balak Nath Story निम्नलिखित प्रकार से वर्णित है:


🕉️ बाबा जी का पहला जन्म: भगवान कार्तिकेय के रूप में

स्कन्द पुराण के अनुसार **बाबा बालक नाथ जी का प्रथम अवतार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र – भगवान स्कन्द या कार्तिकेय के रूप में हुआ था। भगवान कार्तिकेय भी बाल्यावस्था में ही महान योद्धा, ब्रह्मचारी और तपस्वी थे। उनका वाहन मोर (मयूर) था, और बाबा बालक नाथ जी का वाहन भी मोर ही माना जाता है। यही कारण है कि बाबा जी के भक्त उन्हें कार्तिकेय जी का पुनर्जन्म मानते हैं।


🔱 बाबा जी का दूसरा जन्म: कौल रूप में शिव भक्ति

बाबा बालक नाथ जी का दूसरा जन्म “कौल” के रूप में माना जाता है। इस जीवन में भी उन्होंने अपने आराध्य भगवान शिव की घोर तपस्या की। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में बाबा जी ने घोर साधना द्वारा शिव तत्त्व को आत्मसात किया और दिव्य शक्तियाँ प्राप्त कीं। उनका यह जीवन भी एक महान तपस्वी और ब्रह्मचारी की छवि में रहा।


📿 बाबा जी का तीसरा जन्म: शुकदेव मुनि और अमर कथा से संबंध

बाबा जी के तीसरे जन्म को महर्षि व्यास के पुत्र – शुकदेव मुनि के साथ जोड़ा जाता है। शुकदेव मुनि के जन्म की कथा अत्यंत रोचक और रहस्य से परिपूर्ण है:

एक बार देवर्षि नारद ने माता पार्वती से कहा कि भगवान शिव तो अमर हैं, लेकिन उनके साथ रहने वाली देवी (पार्वती) अनेक बार जन्म ले चुकी हैं। इस पर माता पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व की अमर कथा सुनाने का अनुरोध किया।

भगवान शिव ने एक निर्जन और प्राणीविहीन स्थान चुनकर अमर कथा आरंभ की। उस समय पार्वती जी तो नींद में लीन हो गईं, लेकिन एक तोते का बच्चा (शुक) कथा सुन रहा था और ‘हाँ’ में हाँ मिलाता रहा। जब कथा समाप्त हुई, तो भगवान शिव ने देखा कि पार्वती तो सो रही थीं। तब उन्होंने ध्यान से देखा कि कथा कोई और सुन रहा था — वह तोता

गुस्से में आकर शिवजी ने उसे अपने धनुष से मारने का प्रयास किया, लेकिन वह तोता उड़कर महर्षि व्यास की पत्नी के मुख के रास्ते गर्भ में चला गया। शिवजी वहीं प्रतीक्षा करने लगे, पर वह बालक बाहर नहीं आया।

बालक ने बाहर आने के लिए एक शर्त रखी कि — “जिस समय मैं जन्म लूंगा, उस समय जन्म लेने वाले सभी बालक अमरत्व और सिद्धि को प्राप्त करें।” शिवजी के वचन देने पर वह बालक बाहर आया और शुकदेव मुनि के रूप में विख्यात हुआ।

इस दिव्य क्षण में अनेक अन्य सिद्ध बालकों ने भी जन्म लिया — जिन्हें नौ नाथ और चौरासी सिद्ध कहा गया। श्री बाबा बालक नाथ जी भी उन्हीं चौरासी सिद्धों में से एक थे।

🙏 इस प्रकार श्री बाबा बालक नाथ जी का जीवन चरित्र त्रिकालदर्शी, तपस्वी, ब्रह्मचारी और योगी के रूप में प्रकट होता है। उनके जीवन की यह दिव्यता ही आज लाखों भक्तों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।

आगे की कथा में हम जानेंगे कि कैसे बाबा जी ने हिमाचल प्रदेश के शहतलाई और फिर देओटसिद्ध में तपस्या कर जनमानस को चमत्कारों से चकित किया और उन्हें भक्ति और सेवा का मार्ग दिखाया।


द्वापर युग में भगवान शंकर के दर्शन — बाबा बालक नाथ जी की दिव्य कथा

भारत की धार्मिक परंपरा में यह मान्यता सदियों से चली आ रही है कि महापुरुष समय-समय पर विभिन्न युगों में जन्म लेते हैं। यही अवधारणा बाबा बालक नाथ जी के संदर्भ में भी प्रसिद्ध है।

जनश्रुति के अनुसार, बाबा बालक नाथ जी का जन्म हर युग में हुआ —

  • सत्ययुग में वे भगवान कार्तिकेय (स्कन्द स्वामी) के रूप में प्रकट हुए।
  • त्रेतायुग में उन्होंने कौल नामक तपस्वी के रूप में जन्म लिया।
  • और द्वापर युग में वे महाकौल के नाम से प्रसिद्ध हुए।

द्वापर युग की कथा अत्यंत रोमांचक, भक्ति से परिपूर्ण और तप, श्रद्धा तथा सच्चे संकल्प की अनुपम मिसाल है।


महाकौल की तपस्वी यात्रा की शुरुआत

महाकौल रूप में जन्मे बाबा बालक नाथ जी को बाल्यकाल से ही भगवान शंकर के दर्शन की तीव्र अभिलाषा थी। उनके मन में यह भावना सदैव बनी रही कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर स्वयं भगवान शिव के दर्शन करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

इसी अद्वितीय संकल्प के साथ महाकौल जी ने कैलाश पर्वत की ओर कठिन यात्रा आरंभ की। उनका मार्ग मानसरोवर की ओर जाता था — एक पवित्र तीर्थ, जिसे देवताओं का निवास कहा जाता है।


‘धर्मों माता’ से भेंट और बुद्धिपूर्ण सुझाव

यात्रा के दौरान महाकौल को रास्ते में एक वृद्धा मिली, जिसका नाम ‘धर्मों माता’ था।
वह कोई साधारण स्त्री नहीं थी, बल्कि एक दिव्य आत्मा थी, जिसने महाकौल की परीक्षा लेनी चाही।

धर्मों माता ने पूछा,

“हे बाल योगी! कहां जा रहे हो?”

महाकौल ने उत्तर दिया,

“मैं तीन जन्मों से भगवान शंकर की आराधना कर रहा हूँ। अब मैं उन्हीं के साक्षात दर्शन की अभिलाषा लिए कैलाश पर्वत की ओर जा रहा हूँ।”

धर्मों माता मुस्कराई और बोलीं:

“यह कोई आसान कार्य नहीं है। भगवान शंकर का ध्यान गहन होता है और वे सामान्यतः किसी को दर्शन नहीं देते। तुम्हें युक्ति से कार्य करना होगा।”

उन्होंने उपाय बताया कि:

“मानसरोवर के तट पर तपस्या में बैठ जाओ। माँ पार्वती विशेष पर्वों पर वहां स्नान करने आती हैं। जब वह आएँ, तो उनके चरणों में गिरकर अपनी इच्छा व्यक्त करना।”


मानसरोवर पर तपस्या और माता पार्वती से भेंट

महाकौल ने धर्मों माता की सलाह मानी और मानसरोवर झील के किनारे तपस्या में लीन हो गए।
एक दिन माँ पार्वती वहाँ स्नान करने आईं।

जैसे ही वे स्नान कर रही थीं, महाकौल ने उनके वस्त्र उठाकर छिपा लिए।
तब माँ को महाकौल ने अपने तपस्वी जीवन, तीन जन्मों की साधना और भगवान शंकर के दर्शन की प्रबल इच्छा उन्हें बताई।

माँ पार्वती ने देखा कि यह तो वृद्ध योगी हैं, तब उन्होंने कहा:

“यदि तुम भगवान शिव के दर्शन करना चाहते हो, तो बाल रूप में आओ। भगवान शंकर को बाल रूप प्रिय है।”

महाकौल ने उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगी और वस्त्र लौटाए।
माँ पार्वती उनकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न हुईं। अपने योगबल से उन्होंने महाकौल को बालक रूप प्रदान किया और उन्हें कैलाश पर्वत ले गईं।


भगवान शंकर से साक्षात भेंट और अमर वरदान

कैलाश पर पहुँचकर उन्होंने देखा कि भगवान शंकर गहन ध्यान में लीन हैं।
महाकौल ने भाव-विभोर होकर स्तुति आरंभ की।

कुछ समय पश्चात भगवान शिव की नेत्रें खुलीं और उन्होंने सामने एक तेजस्वी बाल योगी को खड़ा पाया। उनकी साधना, भक्ति और आग्रह से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें विशेष वरदान दिया:

हे बाल योगी! तुम कलियुग में अपनी परम सिद्धि से जनमानस के आराध्य देव बनोगे।
तुम जिस बाल्य अवस्था में मेरे समक्ष उपस्थित हुए हो,
सदा उसी रूप में रहोगे।
काल, रोग और आयु का प्रभाव तुम पर नहीं पड़ेगा।
तुम्हारा तेज, भक्ति और चमत्कार लोगों को कलियुग में भी भगवान से जोड़ते रहेंगे।”


बाबा बालक नाथ जी का कलियुग में चौथा जन्म एवं शिक्षा-दीक्षा

बाबा बालक नाथ जी का जीवन दिव्यता, तपस्या और सिद्धि का प्रतीक है। जनश्रुति एवं भक्तों की मान्यता के अनुसार, बाबा जी का चौथा अवतार कलियुग में हुआ। यह जन्म भी पूर्व जन्मों की भांति केवल एक मानव रूप में नहीं, बल्कि एक ईश्वरीय संकल्प के तहत हुआ।


गुजरात के काठियावाड़ में अवतरण

कलियुग में बाबा बालक नाथ जी ने गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में माता लक्ष्मी देवी और पिता विष्णु शर्मा के घर जन्म लिया। उनके पिता एक शिव मंदिर में पुजारी थे, जो अत्यंत धार्मिक और शिव भक्त थे।

कई वर्षों तक संतान सुख न मिलने पर, माता-पिता ने कठोर तप किया और निरंतर भगवान शिव की भक्ति में लीन रहे। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें एक दिव्य बालक के रूप में बाबा बालक नाथ जी का वरदान दिया।


बाल्यकाल से ही अलौकिक लक्षण

बचपन से ही बाबा बालक नाथ जी में दिव्यता के लक्षण प्रकट होने लगे थे —

  • वे साधारण बच्चों की तरह खेल-कूद में मन नहीं लगाते थे।
  • सांसारिक विषयों में कोई रुचि नहीं थी।
  • वे अधिकतर समय ध्यान, भक्ति और मौन साधना में लीन रहते थे।

यह देखकर माता-पिता चिंतित हुए। उन्होंने सोचा कि बेटे को गृहस्थ जीवन में बाँधा जाए, लेकिन बाबा जी का मन तो पहले ही सांसारिक बंधनों से मुक्त था।

जब उन पर विवाह और गृहस्थ आश्रम का दबाव डाला गया, तो बाबा बालक नाथ जी ने अपने ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए घर का त्याग कर दिया।


गिरनार की ओर तीर्थ यात्रा और गुरु दत्तात्रेय से दीक्षा

घर छोड़ने के पश्चात, बाबा बालक नाथ जी गुजरात के गिरनार पर्वत की ओर बढ़े, जहाँ स्थित है पवित्र जूनागढ़। यह स्थान देवताओं की तपोभूमि माना जाता है और यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार श्री गुरु दत्तात्रेय जी ने जूना अखाड़ा की स्थापना की थी।

बाबा जी वहाँ पहुंचे और गुरु दत्तात्रेय जी से योग की विधिवत शिक्षा एवं दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने कठोर तपस्या की, और अल्पकाल में ही सिद्ध योगी बन गए। यही से वे “बाबा बालक नाथ” के नाम से प्रसिद्ध हुए।


देवभूमि हिमाचल की ओर यात्रा

गुरु से आज्ञा लेकर बाबा जी हिमालय की ओर निकले। भ्रमण करते हुए वे पहुँचे हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला, जहाँ भरमौर (प्राचीन नाम ब्रह्मपुर) उनका अगला तपस्थल बना।

भरमौर वह भूमि है जहाँ देवी भरमाणी माता का निवास माना जाता है।


84 सिद्धों की स्थापना और चंपा नगरी की कथा

जब 84 सिद्ध महात्मा मणिमहेश यात्रा पर निकले और भरमौर से गुजरते समय उन्हें यह स्थान अत्यंत रमणीय प्रतीत हुआ। उन्होंने वहाँ ठहरने की भरमाणी माता से अनुमति मांगी, लेकिन माता ने मना कर दिया।

भगवान भोलेनाथ के अनुरोध पर माता भरमाणी ने एक दिन ठहरने की अनुमति दी। इसके बाद भगवान शिव वहाँ से चले गए, लेकिन 84 सिद्धों को 84 शिवलिंग रूप में स्थापित कर दिया गया। यही कारण है कि आज भी भरमौर में 84 सिद्धों की तपोस्थली मानी जाती है।

वहीं के राजा साहिल वर्मा निःसंतान थे। उन्होंने 84 सिद्धों की अत्यंत सेवा की। इससे प्रसन्न होकर सिद्धों ने उन्हें दस पुत्रों और एक कन्या का वरदान दिया।

राजा ने अपनी पुत्री का नाम चंपावती रखा और चंपा नगरी की स्थापना की, जो आगे चलकर चंबा नाम से प्रसिद्ध हुई और राजधानी भी वहीं स्थानांतरित कर दी गई।

इस प्रकार, बाबा बालक नाथ जी का सम्बन्ध चंबा और भरमौर की धरती से भी जुड़ता है, जो आज भी भक्तों की आस्था का केन्द्र है।


शाहतलाई में बाबा बालक नाथ जी की कर्म लीला और दिव्य साधना

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित शाहतलाई बाबा बालक नाथ जी की दिव्य लीलाओं, चमत्कारों और साधना स्थली के रूप में जाना जाता है। यह वही पावन भूमि है जहां बाबा जी ने माई रत्नों के घर अलख जगाई और 12 वर्षों तक निस्वार्थ भाव से सेवा एवं तपस्या का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।


बछरेटु महादेव से शाहतलाई तक की यात्रा

भरमौर से प्रारंभ हुई बाबा जी की यात्रा, कांगड़ा, ज्वालामुखी, हमीरपुर होते हुए बछरेटु पहुंची। वहां कुछ समय उन्होंने बछरेटु महादेव की तपस्या में लीन होकर साधना की। बछरेटु से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शाहतलाई में प्रवेश करते ही बाबा जी ने माई रत्नों के दरवाजे पर दस्तक दी — जो उनके पूर्व जन्म की ऋणानुबंधिनी थीं।


12 वर्ष की सेवा – रोट छाछ की साधना

माई रत्नों वही वृद्धा थीं जिनके पास द्वापर युग में बाबा जी ने 12 घड़ी विश्राम किया था। उस ऋण को चुकाने के लिए बाबा जी ने गाय चराने का दायित्व स्वयं लिया और माई से कहा:
“तू मेरे लिए रोटी और छाछ पेड़ के कोटर में रख देना, जब तप से समय मिलेगा, तब मैं उसे ग्रहण करूंगा।”

साथ में यह शर्त रखी कि माई मैं तब तक ही तेरी गाय चराने का काम करूंगा जब तक तुम मेरे काम से संतुष्ट रहोगी। जिस दिना तुम्हें मेरा काम अच्छा नहीं लगेगा, उस दिन मैं यह काम छोड़ दूंगा। 12 वर्षों तक बाबा जी वटवृक्ष के नीचे माई रत्नों की सेवा करते रहे और गहन साधना में लीन रहे।


बाबा जी का चमत्कार: उजड़ी फसलें बनीं लहलहाते खेत

एक दिन गऊओ ने ज़मींदारों की फसल नष्ट कर दी। ज़मींदारों ने माई रत्नों शिकायत की। माई रत्नों ने गुस्से में आकर बाबा जी को उलाहना दिया कि क्या मैंने ऐसी शिकायतों के लिए ही आपको 12 वर्ष से लस्सी और रोटियां खिलाई हैं? उलाहनों पर बाबा जी ने माई और ज़मींदारों को साथ लेकर खेतों में जब पहुंचे, तो खेत पहेले से भी हरे-भरे दिखे। यह देखकर सभी नतमस्तक हो गए। बाबा जी ने कहा:
“अब मेरा वचन पूरा हुआ, अब मैं चला।”

माई रत्नों के आंसुओं में भी बाबा जी अडिग रहे। उन्होंने वट वृक्ष पर चिमटा मारते ही 12 वर्षों की रोटियां बाहर निकलवा दीं, और धरती पर चिमटा मारते ही छाछ का तालाब प्रकट हुआ। यही स्थान कालांतर में “छाछतलाई” से “शाहतलाई” कहलाया।


गुरु गोरखनाथ से आध्यात्मिक मंथन और मोर सवारी

इसके बाद बाबा जी बनखण्डी में जाकर तप करने लगे। बाबा जी की सिद्धि सुनकर गुरु गोरखनाथ अपने 360 शिष्यों के साथ पहुंचे और उन्हें अपने नाथ पंथ में सम्मिलित करने की इच्छा प्रकट की। आप हमारे बैठने का प्रबन्ध करें। बाबा जी ने अपने कंधे से अपना परना उतारा और उसे धरती पर बिछा दिया। गोरखनाथ और उसके सारे शिष्य इस परने पर बैठ गये।

इसके बाद गुरू गोरखनाथ ने बाबा जी से कहा कि मेरे शिष्य भूखें हैं। इन्हें भोजन का प्रबंध करो। बाबा जी ने उनसे कहा कि मैं स्वयं भोजन ग्रहण नहीं करता हूँ। तब गुरू गोरखनाथ ने बाबा जी को अपने शिष्यों को दूध पिलाने को कहा। बाबा जी ने एक दूध न देने वाली गाय को आवाज देकर बुलाया और उसकी पीठ पर हाथ रखा। गाय के थनों से दुध बहने लगा।

बाबा जी ने अपनी चीपी को गाय के दूध से भरकर गुरू गोरखनाथ के आगे रखा तो गुरू गोरखनाथ ने बाबा जी से कहा कि इस चिपि के दूध से क्या होगा? इस पर बाबा जी ने कहा कि आप इसे अपने शिष्यों को पिलाओ खाली होने पर फिर भर दी जाएगी। गुरू गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को इशारा किया कि इस दूध को पियो और अपनी भूख शांत करो। शिष्यों ने चिपि को उठाकर पेट भरकर दूध पिया लेकिन दूध उतना ही रहा।

इसी कारण बाबा जी को दूधाधारी नाम भी दिया गया है। इस पर गुरू गोरखनाथ थोड़ा शर्मिंदा हुए और बाबा जी को औश्र चमत्कार करने को कहा। जिस पर बाबा जी ने इन्कार कर दिया। गुरू गोरखनाथ को अपना परिचय देने को कहा। इस पर गुरू गोरखनाथ ने अपनी मृगछाला को हवा में उछाला और बाबा जी को इसे नीचे लाने को कहा। बाबा जी ने अपना चिमटा ऊपर उछाला और मृगछाला टुकड़े-टुकड़े होकर नीचे गिर गई। मगर बाबा जी का चिमटा ऊपर आकाश में ही घूमता रहा। जिसे उन्होंने गुरू गोरखनाथ को नीचे उतारने को कहा, जिसमें गोरखनाथ असफल हो गए।

गुरू गोरखनाथ असफल होने पर अपनी हठ पर उतर आए और उन्होंने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि बाबा जी को घेरकर उनके कानों में मुन्दरा पहनाकर अपना शिष्य बना लो। उसके शिष्यों ने बाबा जी को मुन्दरा पहनाना शुरू कर दी। वह कानों में छेद करते लेकिन जैसे ही मुन्दरा डालने लगते वैसे ही छेद बन्द हो जाते। शिष्य बार -बार कोशिश करते रहे पर सफल नहीं हुए।

तो बाबा जी मोर (जो कभी उनके साथ नहीं देखा गया था) को बुलाकर उस पर सवार होकर किलकारी मारते हुए वहां से उड़ गए।


धौलागिरि पर्वत और गुफा की दिव्यता

शाहतलाई से ऊपर स्थित धौलागिरि पर्वत पर बाबा जी ने गहन तपस्या आरंभ की। यहीं एक विशाल गुफा में उन्होंने निवास किया, जहां एक राक्षस से भेंट हुई। अपनी सिद्धि और संतत्व से राक्षस को वश में कर बाबा जी ने उसे स्थान छोड़ने के लिए राज़ी कर लिया। राक्षस ने बदले में बकरे की बली की इच्छा जताई। आज भी बाबा जी को “रोट प्रसाद” और राक्षस को “कुदनू” (बकरे की बली) चढ़ाने की परंपरा जीवित है।


राजा भरथरी की संगति और तप

गुरु गोरखनाथ के कहने पर राजा भरथरी बाबा जी से मिलने आए और उनकी चरण पादुका के पास उतरे। वहां छोटे-बड़े चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं। भरथरी, बाबा जी के साथ तपस्या में लीन हो गए। गुफा के अंदर बाबा जी के साथ दूसरी मूर्ति भरथरी की है।


गुफा में अदृश्य होकर हुए लीन

बाबा जी की तपस्या और चमत्कारों से प्रभावित वनारसी दास ब्राह्मण सबसे पहले उन्हें गुफा में दीप जलाते हुए देखे। बाबा जी ने उन्हें आदेश दिया कि गुफा में अखंड धूना चलता रहे, प्रसाद में मीठा रोट और हलवा चढ़े और राक्षस को बकरे की बली दी जाए। धीरे-धीरे यह स्थान प्रसिद्ध हुआ और लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बन गया।

बाबा जी अंततः उसी गुफा में अदृश्य हो गए। उनके गुफा में दर्शन की सुविधा अब पुरुषों और स्त्रियों के लिए अलग-अलग स्थानों से है। गुफा के ठीक नीचे बनाए गए थड़ा स्थान पर भी अखंड ज्योति जलती है।


बाबा जी का स्वरूप और भक्तजन

जनश्रुति के अनुसार बाबा जी बाल रूप में, सुनहरी जटाओं वाले, कंधे पर झोली, एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में चिमटा लिए रहते हैं। उनके धूने की विभूति आज भी भक्त अपने माथे पर लगाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


बाबा जी के दरबार में पूजा-आरती, भोग-विधान

बाबा जी के दरबार में पूजा और आरती का संक्षिप्त विवरण:

हर सुबह 4 बजे प्राचीन बावड़ी से जल लाया जाता है, जिससे बाबा बालक नाथ जी की पिंडी का स्नान किया जाता है और उसी जल से उनके भोग के लिए रोट तैयार किया जाता है।

सुबह 5 से 6 बजे और शाम को सूर्यास्त के समय आरती होती है। मुख्य पुजारी धूणे की अग्नि से धूप, कपूर और ज्योति जलाकर वेद-पुराण मंत्रों से पूजा करते हैं। मोरपंख से चंवर झुलाया जाता है और रोट का भोग गुफा, थड़ा और धूणे पर चढ़ाया जाता है।

अंत में शिव जी और बाबा जी की आरती होती है, जिसमें भक्तजन भी भाग लेते हैं। पूजा के बाद शंख जल से आशीर्वाद दिया जाता है और बाबा जी की ज्योति भक्तों के बीच घुमाई जाती है, जिसे प्रणाम करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है।


बाबा जी के दरबार में मनाए जाने वाले प्रमुख मेले और पर्व:

दियोटसिद्ध में बाबा बालक नाथ जी के दरबार में पूरे साल श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन कुछ अवसर विशेष रूप से धूमधाम से मनाए जाते हैं:

विश्वशांति रूद्रयज्ञ: हर साल विश्व कल्याण और शांति के लिए विशेष यज्ञ आयोजित होता है।

नया साल बाबा जी दे नाल: हर नए साल की शुरुआत मंदिर में भजन-संध्या और फूलों की सजावट के साथ होती है। मंदिर 24 घंटे खुला रहता है और हजारों श्रद्धालु आशीर्वाद लेते हैं।

चैत्र मास का मेला: 13 मार्च से 14 अप्रैल तक मनाया जाता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु पंजाब, हरियाणा, दिल्ली आदि से दर्शन के लिए आते हैं, कुछ पैदल और दण्डवत यात्रा करके भी आते हैं। अस्थाई बाजार और विशेष बसें चलाई जाती हैं।

रविवार व संक्रांति मेले: हर रविवार खास होता है, लेकिन ज्येष्ठ मास का रविवार विशेष मेला होता है।

श्रावण मास मेला: इस महीने में मोटरसाइकिल यात्राएं आम होती हैं, भक्त बाबा जी के झंडे और भजनों के साथ आते हैं।

अन्य पर्व: महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, दीवाली, गुरुदत्तात्रेय जयंती आदि भी मंदिर में खास मनाए जाते हैं।


🛕 बाबा बालक नाथ मंदिर परिसर – प्रमुख दर्शनीय स्थल

क्रमस्थान का नामविवरण
1.गुफा मंदिरबाबा जी की पिण्डी के दर्शन का मुख्य स्थल, जहां रोट चढ़ाया जाता है।
2.अखण्ड धूणानिरंतर जलने वाला धूणा, जिसकी विभूति को चमत्कारी माना जाता है।
3.थड़ाघी से ज्योति प्रज्वलित रहती है, यहीं सुबह-शाम आरती होती है।
4.बकरा स्थलमनोकामना पूर्ण होने पर बकरा चढ़ाया जाता है; शरीर में कंपन शुभ संकेत माना जाता है।
5.बाबा भरथरी मंदिरराजा भरथरी, गणपति, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियां स्थापित हैं।
6.समाधि स्थलमंदिर के पास और 2 किमी दूर ‘मठ’ में महंतों की समाधियाँ स्थित हैं।
7.चरण पादूका मंदिरपहाड़ी पर स्थित स्थल जहां बाबा जी के पहले चरण पड़े थे।
8.महंत निवासगुरु-शिष्य परंपरा की प्रतीक गद्दी; वर्तमान महंत – श्री श्री 1008 राजेन्द्र गिरी जी महाराज।
9.म्यूजियम और पुस्तकालयबाबा जी से जुड़ी वस्तुएं और धार्मिक पुस्तकें देखने को मिलती हैं।
10.बाजार और सुविधाएंऊपर-नीचे दो बाजार, बैंक, एटीएम, धर्मशाला, होटल आदि उपलब्ध।
11.अन्य मंदिरशिव, हनुमान, भैरव, काली, राधा-कृष्ण, गुरु दत्तात्रेय मंदिर।

शाहतलाई – बाबा जी की तपोस्थली (मुख्य स्थल)

क्रमस्थान का नामविवरण
1.लस्सी बाबा का धूणाबाबा जी का तपस्थल जहां धूणा स्थित है।
2.रोटी बाला मंदिरबाबा जी की रोटी से जुड़ा विशेष स्थान।
3.वट वृक्ष मंदिरजहाँ बाबा जी ने वटवृक्ष के नीचे तप किया।
4.गुरना झाड़ी मंदिरबाबा जी की प्रमुख तपोस्थली, गुफा और झाड़ियों के बीच स्थित।
5.शिव महादेव मंदिर (बछरेटू)प्राचीन शिव मंदिर, शाहतलाई से 5 किमी दूर।

❓ बाबा बालक नाथ जी का प्रमुख मंदिर कहाँ स्थित है?

उत्तर: बाबा बालक नाथ जी का मुख्य मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में दियोटसिद्ध नामक स्थान पर स्थित है।

❓ शाहतलाई और दियोटसिद्ध में क्या संबंध है?

उत्तर: शाहतलाई वह स्थान है जहाँ बाबा जी ने तपस्या की थी और दियोटसिद्ध वह स्थान है जहाँ उन्होंने सिद्धि प्राप्त की और निवास किया।

❓ बाबा जी के दरबार में पूजा किस प्रकार होती है?

उत्तर: हर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में बावड़ी से लाए जल से स्नान, रोट का भोग, धूणे की अग्नि से धूप, कपूर और ज्योति आरती आदि विधियों से पूजा होती है।

❓ बाबा बालक नाथ जी का सबसे बड़ा मेला कब लगता है?

उत्तर: हर साल चैत्र मास (13 मार्च से 14 अप्रैल) के दौरान विशेष मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

❓ बाबा जी के मंदिर में और कौन-कौन से दर्शनीय स्थल हैं?

उत्तर: बाबा जी की गुफा, धूणा, थड़ा, बकरा स्थल, बाबा भरथरी मंदिर, चरण पादूका मंदिर, समाधि स्थल, म्यूजियम, पुस्तकालय आदि विशेष स्थल हैं।

Sharing Is Caring:

Leave a Comment